Saturday, June 2, 2012

होता स्वयं जगत परिणाम, मैं जग का करता क्या काम




इस संसार में प्रत्येक द्रव्य (living and non living beings) का परिणमन (transition) स्वतंत्र है | एक छोटी सी चींटी के लिए कण भर से लेकर हाथी के लिए मन भर तक की व्यवस्था कराने में यह प्रकृति अपने आप में सक्षम है, आत्मनिर्भर है | 

होता स्वयं जगत परिणाम, मैं जग का करता क्या काम ? 

ऐसी स्वचालित सांसारिक व्यवस्था में मनुष्य खुद को इन सभी शुभ - अशुभ कर्मों का कर्ता (doer) जानकर सुखी अथवा दुखी होता है | 

ज्ञानी जीव (enlightened soul) केवल इस परिणमन को होता जान, इन से स्वयं को भिन्न मानता है |

ज्ञान भाव ज्ञानी करे, अज्ञानी अज्ञान !! 

इन सभी कर्मो से हमारी कर्ता दृष्टि को हटाने मात्र से हमें हमारी आत्मा का दर्शन और उसका ज्ञान स्वभाव स्वरूप ही हो जायेगा |

ऐसा समयसार के कर्ता-कर्म अधिकार में आचार्य कुंद कुंद देव ने कहा है |

हिंदी दिवस की आवश्यकता क्यों ?


14 सितम्बर को पूरा देश 'हिन्दी दिवस' के रूप में मनाता है | यह बात हर्षपूर्ण भी लगती है और थोडी निराश भी  करती है | ख़ुशी इस बात की होती है कि हिंदी दिवस के बहाने आज हम सभी अपनी भाषा के बारे में सोचने का, इसके विकास का, इसकी ख्याति विश्व में फैलाने की बातें करते नज़र आते हैं, विद्वानों की बैठकों में हिन्दी की चर्चा होती है, अखबारों में कई साहित्यिक लेख छपते हैं और विद्यालयों में कई संगोष्ठियाँ होती हैं 



Alphabets of Hindi - National Language of India



ये घटनाएं अद्भुत मालूम पड़ती हैं | ऐसे और कितने देश होंगे जो अपनी राष्ट्र भाषा को इस तरह सम्मान देते होंगे | शायद ही ब्रिटेन में कोई दिन अंग्रेजी दिवस के नाम से जाना जाता होगा, चाइना में भी शायद ही ऐसा कोई दिन उनके सरकारी कैलेंडर में होगा जब वे सब लोग पूरे दिन बैठकर अपनी राष्ट्र भाषा के बारे में चिंतन  और मनन करते होंगे | क्या हमने कभी सोचा है की ऐसा क्यों ? क्या उन्हें अपनी राष्ट्र भाषाओँ के प्रति सम्मान  नहीं है, क्या उन्हें उनकी भाषाओँ से स्नेह नहीं है या फिर शायद उन्हें अंग्रेजी और चाइनीज़ की इतनी फ़िक्र करने की आवश्यकता ही नहीं है 

हाँ ! हो सकता है उनकी भाषाओँ का अस्तित्व इनता खतरे में न हो जितना आज हमें अपनी हिंदी का जान पड़ता है जो हम हर वर्ष एक दिन इसकी याद में मनाना जरूरी समझते हैं |

विगत कुछ वर्षों में हमारे देश में एक नई परंपरा का जन्म हुआ है | हम जिसे पीछे छोड़ना चाहते हैं, जिसे केवल यादों में रखना चाहते हैं, हम उसके नाम के दिवस मनाने शुरू कर देते हैं 




Do we have to celebrate days in order to
remember who we actually are?
गाँधी जयंती के दिन लोग संदूकों से अपने खादी के कुरते और टोपियाँ निकाल कर सड़कों पर कूद पड़ते हैं, जम कर नारेबाजी होती है और शराब की दुकानों पर ताले पड़ जाते हैं | अगले ही दिन सब भूल जाते हैं की कल हमने क्या नारे लगाए थे और आज हम क्या कर रहे हैं |

इसी प्रकार अब हम हिंदी दिवस मना रहे हैं | भारी मात्र में "Happy Hindi Diwas" के स्क्रैप और मेसेजों का आदान प्रदान हो रहा है | बड़ा ही अनोखा अनुभव है | यहाँ हम अपनी राष्ट्र भाषा को, अपनी विरासत को, संदूक में बंद कर के सुरक्षित कर देने कि कोशिश में खूब कामयाब होते नज़र  रहे हैं 

आज कई सार्वजनिक स्थानों और सकारी कार्यालयों में "हिंदी का प्रयोग कीजिये" की तख्तियां लटकी पायी जाती हैं | लोगों को समझाया जाता है हिंदी बोलने में हीनता महसूस न करें , हिंदी गर्व से बोलिए | यह हमारा और हमारी राष्ट्र भाषा का दुर्भाग्य है की आजादी प्राप्त करने की मात्र ६० वर्ष बाद ही हमें ये दिन देखने पड़ रहे हैं  |

हिन्दी की अपेक्षा युवा पीढी एक नई, कुछ अनोखी ही भाषा के निर्माण में लगी हुई है | धीरे धीरे वास्तविक हिंदी का स्वरुप बदलता दिखाई दे रहा है | हिंदी का एक नया रूप हमारे सामने प्रकट हो रहा है | यह हिंदी केवल हिंदी नहीं, वल्कि उर्दू, अंग्रेजी और  जाने किन किन भाषाओँ का एक अद्भुत समन्वय है | पर एक बात सत्य है की ये नई भाषा लोक प्रिय है और हमारी मूल हिंदी से ज्यादा चहेती मालूम पड़ रही है 


हिन्दी की आवश्यकताएं :

विश्व भर में जिन भी विषयों पर सर्वाधिक शोध कार्य चल रहे हैं, हमें चाहिए की उनसे सम्बंधित कार्यों को हिंदी भाषा में लिपिबद्ध किया जाए, छात्रों को उनसे सम्बंधित पुस्तकें, हिंदी में उपलब्ध हों | आज कंप्यूटर के युग में सॉफ्टवेर सम्बन्धी अनेकों जानकारियाँ ऐसी हैं, जिन पर हिंदी में कोई भी उम्दा पुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं | यदि हम ऐसा कर पाए, तो हिंदी भाषा का जानकार होना, भारतीयों को तो उपयोगी लगेगा ही और हिन्दी सीखना और समझना विदेशियों को भी लाभदायक महसूस होगा |

आज कई ऐसे शब्द हैं जिनका हिंदी में प्रयोग करना हमें मुश्किल लगता है, और यदि किया जाए तो सुनने वालों को हास्यास्पद नज़र आता है |

Tie को में टाई न बोल कर, केवल हिंदी बोलने की जिद के कारण यदि हम कंठ लंगोट बोलने लगें तो हिंदी का तो उपहास होगा ही, हमारा मजाक बनेगा सो अलग | ऐसे शब्दों का क्या किया जाए, ये १०-१२ नहीं हैं, इनकी संख्या बहुत अधिक है | हिन्दुस्तान का सबसे लोक प्रिय खेल क्रिकेट, यदि पुछा जाए की देश की राष्ट्रीय भाषा में इसे क्या कहेंगे, तो शायद हमें "लम्ब डंड - गोल पिंड - धडपकड़ प्रतियोगिता" जैसी शब्द श्रृंख्ला का आविष्कार करना होगा , जो अनुपयोगी होगा और हर किसी के लिए मुनासिब भी नहीं होगा |

देखा जाये तो हिंदी भाषा उत्पत्ति के एक अरसे बाद भी , क्रिकेट जैसे किसी शब्द की जरुरत हमारी भाषा के रचनाकारों को महसूस ही नही हुई | ठीक उसी तरह न हमने कभी कंठ लंगोट देखी और न हमें उसे कोई नाम देने कि जरुरत पड़ी | धोती - कुर्ता पहन ने वालों ने न कभी Tie देखी और न ही कभी उसके बारे में सुना तो ऐसे किसी शब्द की कभी जरुरत नही पड़ी |

परन्तु आज हिन्दी भाषियों को केवल सीमित इलाकों में नही रहना है , केवल चंद किताबों के ज्ञान में नहीं सिमटना है | आज यदि अमेरिका या ब्रिटेन में कोई नयी खोज होती है, तो हमें उसकी जानकारी हिंदी में होना, हमारी भी जरुरत है और हमारी भाषा की भी | यदि अमेरिका में कोई वैज्ञानिक Global Warming पर शोध करता है और उस प्रक्रिया का वैश्विक रूप होने के कारण हमारे छात्रों को उसकी जानकारी होना अनिवार्य होता है, तो हमारी भाषा की यह आवश्यकता है ऐसी घटनाओं के लिए किसी नवीन हिंदी शब्द की रचना हो | या तो हमारा शब्द कोष बड़े या फिर हम ऐसे शब्दों को ज्यों के त्यों हिंदी में सम्मिलित कर लें |

आज हम Computer को कंप्यूटर कहना ही पसंद करते हैं, शायद बच्चों को इसे संगणक कहने में हंसी आये या हिचकिचाहट हो |

इस समस्या के दो सीधे से हल नज़र आते हैं,
  • या तो हम Computer शब्द को कंप्यूटर के रूप मैं ही स्वीकार कर के इसे हिंदी का एक नया शब्द मान लें |
  • या फिर छोटी कक्षाओं से ही छात्रों को कंप्यूटर शब्द की अपेक्षा संगणक शब्द से परिचित कराया जाए, ताकि यह शब्द उन्हें भविष्य मैं हास्यास्पद न लगे |
सरकारी कागजादों में हिंदी भाषा का उपयोग :


भारत सरकार ने हिंदी के उपयोग को अनिवार्य बनाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं परन्तु कई बार ऐसा प्रतीत होता है, की वे कदम भी सही disha में नही पड़े हम कई बैंकों और सरकारी कार्यालयों में जाते हैं, कोर्ट कचहरी आदि में जब हम सरकारी काग्जादों, फॉर्म इत्यादियों में लिखी हिंदी देखते हैं, तो हमारा माथा चकरा जाता है, की ये हिंदी जो यहाँ लिखी है, न तो हमने पहले कहीं सुनी है और न देखी है हम उस दस्तावेज को पलट कर अंग्रेजी भाषा में फॉर्म भरना ज्यादा अनुकूल और सहज समझते हैं हमें आवरण की अपेक्षा Withdrawl शब्द जल्दी समझ में आता है ये तो बात हुई हमारी और आपकी यदि हम आने वाली पीढी की बात करें तो उन्हें तो शायद यह ब्लॉग पड़ना ही भारी पद जाए, हिंदी में जो है इसके लिए भी निम्न दो ही उपाय मुझे समझ में आते हैं :

  • सरकारी दफ्तरों में प्रयोग की जाने वाली हिंदी को सहज और साधारण बनाने का प्रयास आवश्यक है फॉर्म भरते वक्त हमें यह नहीं लगना चाहिए की हम किसी साहित्यकार की कोई रचना पद रहेहैं
  • या फिर आहरण जैसे अन्य आवश्यक शब्दों को, जिनका इस्तेमाल भविष्य में अनिवार्य है, इनसे छात्रों को पहले से ही अवगत करा देना चाहिए
मातृभाषा , राष्ट्रभाषा और अंतरराष्ट्रीय भाषा :


स्कूलों में सभी विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा, गुजराती, मराठी, बंगाली, तमिल इत्यादि का अध्यन कराया जाना बहुत जरुरी है महात्मा गाँधी का भी यही मानना था की यदि विद्या मात्रभाषा में प्रदान की जाए, तो ग्रहण करना बहुत सुलभ हो जाता है और हम छात्रों से बहतर परिणामो की अपेक्षा कर सकते हैं परन्तु भारत वर्ष में संपूर्ण राष्ट्र में व्याप्त हिंदी भाषा का ज्ञान और उसमे निपुणता होना भी उतना ही जरुरी है ताकि सभी हिन्दुस्तानी देश की किसी भी कोने में जाकर व्यापार करने के योग्य हों और सभी देशवासियों के समक्ष अपनी भावनाएं व्यक्त करने में दक्ष हों ठीक इसी प्रकार, अंग्रेजी, जो की पूरे विश्व में व्यापर की भाषा बन चुकी है, उसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा जान कर, उसका ज्ञान भी सभी को होना, अहम् हो जाता है

Monday, February 15, 2010

Bajrangi Byaah Kara De



भैया भोला राम कुंवारे, जा पहुंचे हनु मंदिर दुवारे,


हाथ जोड़ कर बोले, हे बजरंगी !! मुझ पर ध्यान जरा दे ..

बहुत दिनों से भटक रहा हूँ, मेरा ब्याह करा दे !!

विनती सुनकर इस कुंवारे की, बोले तब हनुमान,
कि कान खोल कर सुन ले मेरी, मूरख इंसान !!

दो
पेढे परसाद चड़ा कर जीवन भर का स्वाद चाहिए,
दो दिन की सेवा के बदले, ब्याह का आशीर्वाद चाहिए !!

क्या तुझ को मालूम नहीं, में श्री राम का प्यारा,
गदा उठा कर रण में कूदा, जब भी हुआ इशारा !!

सीता माँ कि खोज में निकला, लंका में जा आग लगा दी,
हिमगिरी कि चोटी पर चड़कर, लक्ष्मण सांजी बूटी ला दी,

सेवा में जा उम्र खपा दी .....

सेवा में जा उम्र खपा दी .. तब भी नहीं हुई मेरी शादी !!!

भोले भक्त बता तू मुझको , तुझ को मैं कैसे समझाउं ??

मेरा ब्याह तो हो जाने दे ...... फिर तेरा करवाऊं !!
मेरा ब्याह तो हो जाने दे ...... फिर तेरा करवाऊं !!

Monday, February 8, 2010

Buffe ki Daawat

बफे की दावत

आप माने या माने,
पर हमारे लिए सबसे बड़ी आफत ..
ये बफे की दावत !

एक बार .. हमारा भी जाना हुआ बरात में ..
बीवी बच्चे थे साथ में ,
सभी के सभी बाहर से शो-पीस, अन्दर से रूखे थे ..
क्या करें भाई साहब, सुबह से भूखे थे ,

जैसे ही खाने का संदेसा आया हाल में ,
मानो भगदड़ सी मच गयी पांडाल में !
सब के सब, एक के ऊपर एक बरसने लगे ,
जिसने झपट लिया सो झपट लिया, बाकी खड़े-खड़े तरसने लगे !

एक आदमी हाथ में प्लेट लिए, इधर से उधर चक्कर लगा रहा था ,
खाना लेना तो दूर उसे देख भी नहीं पा रहा था

दूसरा अपनी प्लेट में चावल कि तस्तरी झाड लाया था ,
उस से कहीं ज्यादा तो अपना पजामा फाड़ लाया था

तीसरी एक महिला थी, जो ताड़ कि तरह तनी थी ,
उसकी आधी सादी तो पनीर कि सब्जी में सनी थी ...
उसे बार-बार धो रही थी ..
पड़ोसन कि थी .. इसलिए सर पीट-पीट कर रो रही थी

चौथा बेचारा, मजबूर था, लाचार था,
इसलिए कपडे उतार कर पहले से ही तैयार था !!

पांचवा अकेले ही सारे झटके झेल रहा था ..
भीड़ में घुसने से पहले, दण्ड पेल रहा था !!

छटा इन हरकतों से बेहद परेशान था ..
इसलिए उसका बीवी बच्चों से ज्यादा, प्लेट पे ध्यान था

सातवा तो कल्पना में ही खा रहा था .....
प्लेट दुसरे की देख रहा था .. मुंह अपना चला रहा था

आठवे का तो मालिक ही रब था ,
प्लेट तो उसके हाथ में थी .. मगर हलवा गायब था

नवा भी कुछ अजीब हरकतें कर रहा था ..
खाना खाने की बजाय जेबों में भर रहा था

और दसवे हम थे ..
जो देखते हुए यहाँ की हालत ,
अपनी पत्नी से बोले ..
डियर लौट चलें सही सलामत !!

बस फिर क्या था ..

इस बात पर पत्नी बिगड़ गयी .. बोली किस कमबख्त के पल्ले पड़ गयी ..
इस से अच्छा तो किसी पहलवान से शादी रचाती ..
तो कम से कम भूखी तो मारी जाती,
पर इस से शादी रचा कर तो आज तक अपने मन को कचोट रही हूँ ..
ज़िन्दगी में पहली बार किसी दावत से बिना कुछ खाए लौट रही हूँ !!

Beautiful kavita by - Nilanjan Mukherji