Saturday, June 2, 2012

हिंदी दिवस की आवश्यकता क्यों ?


14 सितम्बर को पूरा देश 'हिन्दी दिवस' के रूप में मनाता है | यह बात हर्षपूर्ण भी लगती है और थोडी निराश भी  करती है | ख़ुशी इस बात की होती है कि हिंदी दिवस के बहाने आज हम सभी अपनी भाषा के बारे में सोचने का, इसके विकास का, इसकी ख्याति विश्व में फैलाने की बातें करते नज़र आते हैं, विद्वानों की बैठकों में हिन्दी की चर्चा होती है, अखबारों में कई साहित्यिक लेख छपते हैं और विद्यालयों में कई संगोष्ठियाँ होती हैं 



Alphabets of Hindi - National Language of India



ये घटनाएं अद्भुत मालूम पड़ती हैं | ऐसे और कितने देश होंगे जो अपनी राष्ट्र भाषा को इस तरह सम्मान देते होंगे | शायद ही ब्रिटेन में कोई दिन अंग्रेजी दिवस के नाम से जाना जाता होगा, चाइना में भी शायद ही ऐसा कोई दिन उनके सरकारी कैलेंडर में होगा जब वे सब लोग पूरे दिन बैठकर अपनी राष्ट्र भाषा के बारे में चिंतन  और मनन करते होंगे | क्या हमने कभी सोचा है की ऐसा क्यों ? क्या उन्हें अपनी राष्ट्र भाषाओँ के प्रति सम्मान  नहीं है, क्या उन्हें उनकी भाषाओँ से स्नेह नहीं है या फिर शायद उन्हें अंग्रेजी और चाइनीज़ की इतनी फ़िक्र करने की आवश्यकता ही नहीं है 

हाँ ! हो सकता है उनकी भाषाओँ का अस्तित्व इनता खतरे में न हो जितना आज हमें अपनी हिंदी का जान पड़ता है जो हम हर वर्ष एक दिन इसकी याद में मनाना जरूरी समझते हैं |

विगत कुछ वर्षों में हमारे देश में एक नई परंपरा का जन्म हुआ है | हम जिसे पीछे छोड़ना चाहते हैं, जिसे केवल यादों में रखना चाहते हैं, हम उसके नाम के दिवस मनाने शुरू कर देते हैं 




Do we have to celebrate days in order to
remember who we actually are?
गाँधी जयंती के दिन लोग संदूकों से अपने खादी के कुरते और टोपियाँ निकाल कर सड़कों पर कूद पड़ते हैं, जम कर नारेबाजी होती है और शराब की दुकानों पर ताले पड़ जाते हैं | अगले ही दिन सब भूल जाते हैं की कल हमने क्या नारे लगाए थे और आज हम क्या कर रहे हैं |

इसी प्रकार अब हम हिंदी दिवस मना रहे हैं | भारी मात्र में "Happy Hindi Diwas" के स्क्रैप और मेसेजों का आदान प्रदान हो रहा है | बड़ा ही अनोखा अनुभव है | यहाँ हम अपनी राष्ट्र भाषा को, अपनी विरासत को, संदूक में बंद कर के सुरक्षित कर देने कि कोशिश में खूब कामयाब होते नज़र  रहे हैं 

आज कई सार्वजनिक स्थानों और सकारी कार्यालयों में "हिंदी का प्रयोग कीजिये" की तख्तियां लटकी पायी जाती हैं | लोगों को समझाया जाता है हिंदी बोलने में हीनता महसूस न करें , हिंदी गर्व से बोलिए | यह हमारा और हमारी राष्ट्र भाषा का दुर्भाग्य है की आजादी प्राप्त करने की मात्र ६० वर्ष बाद ही हमें ये दिन देखने पड़ रहे हैं  |

हिन्दी की अपेक्षा युवा पीढी एक नई, कुछ अनोखी ही भाषा के निर्माण में लगी हुई है | धीरे धीरे वास्तविक हिंदी का स्वरुप बदलता दिखाई दे रहा है | हिंदी का एक नया रूप हमारे सामने प्रकट हो रहा है | यह हिंदी केवल हिंदी नहीं, वल्कि उर्दू, अंग्रेजी और  जाने किन किन भाषाओँ का एक अद्भुत समन्वय है | पर एक बात सत्य है की ये नई भाषा लोक प्रिय है और हमारी मूल हिंदी से ज्यादा चहेती मालूम पड़ रही है 


हिन्दी की आवश्यकताएं :

विश्व भर में जिन भी विषयों पर सर्वाधिक शोध कार्य चल रहे हैं, हमें चाहिए की उनसे सम्बंधित कार्यों को हिंदी भाषा में लिपिबद्ध किया जाए, छात्रों को उनसे सम्बंधित पुस्तकें, हिंदी में उपलब्ध हों | आज कंप्यूटर के युग में सॉफ्टवेर सम्बन्धी अनेकों जानकारियाँ ऐसी हैं, जिन पर हिंदी में कोई भी उम्दा पुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं | यदि हम ऐसा कर पाए, तो हिंदी भाषा का जानकार होना, भारतीयों को तो उपयोगी लगेगा ही और हिन्दी सीखना और समझना विदेशियों को भी लाभदायक महसूस होगा |

आज कई ऐसे शब्द हैं जिनका हिंदी में प्रयोग करना हमें मुश्किल लगता है, और यदि किया जाए तो सुनने वालों को हास्यास्पद नज़र आता है |

Tie को में टाई न बोल कर, केवल हिंदी बोलने की जिद के कारण यदि हम कंठ लंगोट बोलने लगें तो हिंदी का तो उपहास होगा ही, हमारा मजाक बनेगा सो अलग | ऐसे शब्दों का क्या किया जाए, ये १०-१२ नहीं हैं, इनकी संख्या बहुत अधिक है | हिन्दुस्तान का सबसे लोक प्रिय खेल क्रिकेट, यदि पुछा जाए की देश की राष्ट्रीय भाषा में इसे क्या कहेंगे, तो शायद हमें "लम्ब डंड - गोल पिंड - धडपकड़ प्रतियोगिता" जैसी शब्द श्रृंख्ला का आविष्कार करना होगा , जो अनुपयोगी होगा और हर किसी के लिए मुनासिब भी नहीं होगा |

देखा जाये तो हिंदी भाषा उत्पत्ति के एक अरसे बाद भी , क्रिकेट जैसे किसी शब्द की जरुरत हमारी भाषा के रचनाकारों को महसूस ही नही हुई | ठीक उसी तरह न हमने कभी कंठ लंगोट देखी और न हमें उसे कोई नाम देने कि जरुरत पड़ी | धोती - कुर्ता पहन ने वालों ने न कभी Tie देखी और न ही कभी उसके बारे में सुना तो ऐसे किसी शब्द की कभी जरुरत नही पड़ी |

परन्तु आज हिन्दी भाषियों को केवल सीमित इलाकों में नही रहना है , केवल चंद किताबों के ज्ञान में नहीं सिमटना है | आज यदि अमेरिका या ब्रिटेन में कोई नयी खोज होती है, तो हमें उसकी जानकारी हिंदी में होना, हमारी भी जरुरत है और हमारी भाषा की भी | यदि अमेरिका में कोई वैज्ञानिक Global Warming पर शोध करता है और उस प्रक्रिया का वैश्विक रूप होने के कारण हमारे छात्रों को उसकी जानकारी होना अनिवार्य होता है, तो हमारी भाषा की यह आवश्यकता है ऐसी घटनाओं के लिए किसी नवीन हिंदी शब्द की रचना हो | या तो हमारा शब्द कोष बड़े या फिर हम ऐसे शब्दों को ज्यों के त्यों हिंदी में सम्मिलित कर लें |

आज हम Computer को कंप्यूटर कहना ही पसंद करते हैं, शायद बच्चों को इसे संगणक कहने में हंसी आये या हिचकिचाहट हो |

इस समस्या के दो सीधे से हल नज़र आते हैं,
  • या तो हम Computer शब्द को कंप्यूटर के रूप मैं ही स्वीकार कर के इसे हिंदी का एक नया शब्द मान लें |
  • या फिर छोटी कक्षाओं से ही छात्रों को कंप्यूटर शब्द की अपेक्षा संगणक शब्द से परिचित कराया जाए, ताकि यह शब्द उन्हें भविष्य मैं हास्यास्पद न लगे |
सरकारी कागजादों में हिंदी भाषा का उपयोग :


भारत सरकार ने हिंदी के उपयोग को अनिवार्य बनाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं परन्तु कई बार ऐसा प्रतीत होता है, की वे कदम भी सही disha में नही पड़े हम कई बैंकों और सरकारी कार्यालयों में जाते हैं, कोर्ट कचहरी आदि में जब हम सरकारी काग्जादों, फॉर्म इत्यादियों में लिखी हिंदी देखते हैं, तो हमारा माथा चकरा जाता है, की ये हिंदी जो यहाँ लिखी है, न तो हमने पहले कहीं सुनी है और न देखी है हम उस दस्तावेज को पलट कर अंग्रेजी भाषा में फॉर्म भरना ज्यादा अनुकूल और सहज समझते हैं हमें आवरण की अपेक्षा Withdrawl शब्द जल्दी समझ में आता है ये तो बात हुई हमारी और आपकी यदि हम आने वाली पीढी की बात करें तो उन्हें तो शायद यह ब्लॉग पड़ना ही भारी पद जाए, हिंदी में जो है इसके लिए भी निम्न दो ही उपाय मुझे समझ में आते हैं :

  • सरकारी दफ्तरों में प्रयोग की जाने वाली हिंदी को सहज और साधारण बनाने का प्रयास आवश्यक है फॉर्म भरते वक्त हमें यह नहीं लगना चाहिए की हम किसी साहित्यकार की कोई रचना पद रहेहैं
  • या फिर आहरण जैसे अन्य आवश्यक शब्दों को, जिनका इस्तेमाल भविष्य में अनिवार्य है, इनसे छात्रों को पहले से ही अवगत करा देना चाहिए
मातृभाषा , राष्ट्रभाषा और अंतरराष्ट्रीय भाषा :


स्कूलों में सभी विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषा, गुजराती, मराठी, बंगाली, तमिल इत्यादि का अध्यन कराया जाना बहुत जरुरी है महात्मा गाँधी का भी यही मानना था की यदि विद्या मात्रभाषा में प्रदान की जाए, तो ग्रहण करना बहुत सुलभ हो जाता है और हम छात्रों से बहतर परिणामो की अपेक्षा कर सकते हैं परन्तु भारत वर्ष में संपूर्ण राष्ट्र में व्याप्त हिंदी भाषा का ज्ञान और उसमे निपुणता होना भी उतना ही जरुरी है ताकि सभी हिन्दुस्तानी देश की किसी भी कोने में जाकर व्यापार करने के योग्य हों और सभी देशवासियों के समक्ष अपनी भावनाएं व्यक्त करने में दक्ष हों ठीक इसी प्रकार, अंग्रेजी, जो की पूरे विश्व में व्यापर की भाषा बन चुकी है, उसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा जान कर, उसका ज्ञान भी सभी को होना, अहम् हो जाता है

6 comments:

  1. बहुत बधाई !! बहुत सुन्दर लेख सुलभ जी ...
    आपने सही कहा, अंग्रेजी का ज्ञान भी उतना ही ज़रूरी है, जितना की हिंदी का , मेरे विचार से हमें व्यावसयिक रूप से अंग्रेजी का उपयोग करना चाहिए, और घरों मैं और समाज मैं हम हिंदी का उपयोग कर सकते हैं, क्योंकि हम अंग्रेजी की महत्ता को नकार नहीं सकते हैं, जो आज के समय मैं बहुत ही ज्यादा आवश्यक है,और सभी हिंदी शब्दों का बहुत ही आसानी से उपयोग करना संभव भी नहीं है, अब कोई "Cigarette" को "श्वेत लम्ब चूसक दंडिका" तो कह नहीं सकता, इसलिए जो बदलाव हैं, हमें उन्ही के सांथ चलना पड़ेगा, यही हमारी विवशता है, और हमें स्वीकार भी करना पड़ेगा, वैसे जैसा मैं विवशता शब्द का यहाँ उपयोग कर रहा हूँ ये भी ठीक नहीं है, हमें यह स्वीकार ही करना पड़ेगा.
    क्योंकि जब बच्चे बड़े होकर, अपनी शिक्षा के लिए बाहर निकलते हैं, वहां उनका सामना अंग्रेजी भाषा बोलने वालों के वातावरण मैं ही होता है, और ऐसे समय मैं जब अंग्रेजी को आज की पीड़ी बहुत ज़रूरी मानती है, और जो लोग अंग्रेजी ठीक से नहीं बोल पाते हैं, अपने आप को अंग्रेजी बोलने वालों के बीच काफी हीन अनुभव करते हैं, इसलिए हमें Hinglish और English को स्वीकारना पड़ेगा.
    अभी १३ सितम्बर को मैं NDTV India पर हम लोग देख रहा था, जिसमें अशोक चक्रधर जी भी आये हुए थे, उन्होंने एक बहुत बढ़िया बात कही, "अंग्रेजी मैं सर्वे करो लेकिन हिंदी पर गर्व करों" मैं इससे पूरी तरह सहमत हूँ |
    आशा करता हूँ हमेशा आप ऐसे ही लिखते रहेंगे, धन्यवाद ..

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  2. Very Good striking and influential blog Sulabh.

    Language is nothing but a medium to share and spread knowledge.And if knowledge is to spread more and more one must have to use language which is widely known.for that matter ENGLISH is a good medium.There are many words which we use in common day to day life which are nowhere found in any language's dictionary (Lafda,Tanka etc.)but still these words carry a meaning and meaning which perhaps is more understandable and striking.When Sanskrit was in fashion people used to speak and understand Sanskrit.People use uriya,tamil,malyalam in different part of our country without any hesitation or complex.So what I mean to say that use a language which is comprehensible without putting the subject in controversy or debate.

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  3. सुलभ जी , फेसबुक पर गुंजन रवि शर्मा जी बड़ी बेशर्मी से आपके पोस्ट को अपने नाम से छाप रहे है
    https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1715989968523652&id=100003379971848

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  4. Hi, a nice collection of awesome articles, Keep it up.
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  5. Very Usefull Information. Thanks for sharing this information Hindi Diwas Poems

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