भैया भोला राम कुंवारे, जा पहुंचे हनु मंदिर दुवारे,
हाथ जोड़ कर बोले, हे बजरंगी !! मुझ पर ध्यान जरा दे ..बहुत दिनों से भटक रहा हूँ, मेरा ब्याह करा दे !!
विनती सुनकर इस कुंवारे की, बोले तब हनुमान,
कि कान खोल कर सुन ले मेरी, ओ मूरख इंसान !!
दो पेढे परसाद चड़ा कर जीवन भर का स्वाद चाहिए,
दो दिन की सेवा के बदले, ब्याह का आशीर्वाद चाहिए !!
क्या तुझ को मालूम नहीं, में श्री राम का प्यारा,
गदा उठा कर रण में कूदा, जब भी हुआ इशारा !!
सीता माँ कि खोज में निकला, लंका में जा आग लगा दी,
हिमगिरी कि चोटी पर चड़कर, लक्ष्मण सांजी बूटी ला दी,
सेवा में जा उम्र खपा दी .....
सेवा में जा उम्र खपा दी .. तब भी नहीं हुई मेरी शादी !!!
भोले भक्त बता तू मुझको , तुझ को मैं कैसे समझाउं ??
मेरा ब्याह तो हो जाने दे ...... फिर तेरा करवाऊं !!
मेरा ब्याह तो हो जाने दे ...... फिर तेरा करवाऊं !!
बफे की दावतआप माने या न माने,
पर हमारे लिए सबसे बड़ी आफत ..
ये बफे की दावत !
एक बार .. हमारा भी जाना हुआ बरात में ..
बीवी बच्चे थे साथ में ,
सभी के सभी बाहर से शो-पीस, अन्दर से रूखे थे ..
क्या करें भाई साहब, सुबह से भूखे थे ,
जैसे ही खाने का संदेसा आया हाल में ,
मानो भगदड़ सी मच गयी पांडाल में !
सब के सब, एक के ऊपर एक बरसने लगे ,
जिसने झपट लिया सो झपट लिया, बाकी खड़े-खड़े तरसने लगे !
एक आदमी हाथ में प्लेट लिए, इधर से उधर चक्कर लगा रहा था ,
खाना लेना तो दूर उसे देख भी नहीं पा रहा था 
दूसरा अपनी प्लेट में चावल कि तस्तरी झाड लाया था ,
उस से कहीं ज्यादा तो अपना पजामा फाड़ लाया था 
तीसरी एक महिला थी, जो ताड़ कि तरह तनी थी ,
उसकी आधी सादी तो पनीर कि सब्जी में सनी थी ...
उसे बार-बार धो रही थी ..
पड़ोसन कि थी .. इसलिए सर पीट-पीट कर रो रही थी 
चौथा बेचारा, मजबूर था, लाचार था,
इसलिए कपडे उतार कर पहले से ही तैयार था !!
पांचवा अकेले ही सारे झटके झेल रहा था ..
भीड़ में घुसने से पहले, दण्ड पेल रहा था !!
छटा इन हरकतों से बेहद परेशान था ..
इसलिए उसका बीवी बच्चों से ज्यादा, प्लेट पे ध्यान था 
सातवा तो कल्पना में ही खा रहा था .....
प्लेट दुसरे की देख रहा था .. मुंह अपना चला रहा था 
आठवे का तो मालिक ही रब था ,
प्लेट तो उसके हाथ में थी .. मगर हलवा गायब था 
नवा भी कुछ अजीब हरकतें कर रहा था ..
खाना खाने की बजाय जेबों में भर रहा था 
और दसवे हम थे ..
जो देखते हुए यहाँ की हालत ,
अपनी पत्नी से बोले ..
डियर लौट चलें सही सलामत !!
बस फिर क्या था ..
इस बात पर पत्नी बिगड़ गयी .. बोली किस कमबख्त के पल्ले पड़ गयी ..
इस से अच्छा तो किसी पहलवान से शादी रचाती ..
तो कम से कम भूखी तो न मारी जाती,
पर इस से शादी रचा कर तो आज तक अपने मन को कचोट रही हूँ ..
ज़िन्दगी में पहली बार किसी दावत से बिना कुछ खाए लौट रही हूँ !!
Beautiful kavita by - Nilanjan Mukherji